13-11-81  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"परखने और निर्णय शक्ति का आधार- साइलेंस की शक्ति"

शान्ति के सागर शिव बाबा अपने शान्ति मूर्त्त बच्चों प्रति बोले:-

आज निर्वाण अर्थात् वाणी से परे शान्त स्वरूप स्थिति का अनुभव करा रहे हैं। आप आत्माओं का स्वधर्म और सुकर्म, स्व-स्वरूप, स्वदेश है ही - शान्त। संगमयुग की विशेष शक्ति भी साइलेंस की शक्ति है। आप सभी संगमयुगी आत्माओं का लक्ष्य भी यही है कि अब स्वीट साइलेन्स होम में जाना है। इसी अनादि लक्षण-शान्त स्वरूप रहना और सर्व को शान्ति देना- इसी शक्ति की विश्व में आवश्यकता है। सर्व समस्याओं का हल इसी साइलेन्स की शक्ति से होता है। क्यों? साइलेन्स अर्थात् शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता के कारण विशेष दो शक्तियाँ सदा प्राप्त होती हैं। एक- परखने की शक्ति। दूसरी- निर्णय करने की शक्ति। यही विशेष दो शक्तियाँ व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं का सहज साधन है।

परमार्थ मार्ग में विघ्न- विनाशक बनने का साधन है- माया को परखना। और परखने के बाद निर्णय करना। न परखने के कारण ही भिन्न-भिन्न माया के रूपों को दूर से भगा नहीं सकते हैं। परमार्था बच्चों के सामने माया भी रायल ईश्वरीय रूप रच करके आती है। जिसको परखने के लिए एकाग्रता की शक्ति चाहिए। और एकाग्रता की शक्ति साइलेन्स की शक्ति से ही प्राप्त होती है।

वर्तमान समय ब्राह्मण आत्माओं में तीव्रगति का परिवर्तन कम है। क्योंकि माया के रायल ईश्वरीय रोल्ड गोल्ड को रीयल गोल्ड समझ लेते हैं। जिस कारण वर्तमान न परखने के कारण बोल क्या बोलते हैं- मैंने जो किया वा कहा, वह ठीक बोला। मैं किसमें रांग हूँ! ऐसे ही तो चलना पड़ेगा! रांग होते भी अपने को रांग नहीं समझेंगें। कारण? परखने की शक्ति की कमी। माया के रायल रूप को रीयल समझ लेते। परखने की शक्ति न होने के कारण यथार्थ निर्णय भी नहीं कर सकते। स्व-परिवर्तन करना है वा परपरिवर्त न होना है, यह निर्णय नहीं कर सकते। इसलिए परिवर्तन की गति तीव्र चाहिए। समय तीव्रगति से आगे बढ़ रहा है। लेकिन समय प्रमाण परिवर्तन होना और स्व के श्रेष्ठ संकल्प से परिवर्तन होना- इसमें प्राप्ति की अनुभूति में रात-दिन का अन्तर है। जैसे आजकल की सवारी कार चलाते हो ना! एक है सेल्फ स्टार्ट होना और दूसरा है धक्के से स्टार्ट होना। तो दोनों में अन्तर है ना! तो समय के धक्के से परिवर्तन होना यह है पुरूषार्थ की गाड़ी धक्के से चलाना। सवारी में चलना नहीं हुआ, सवारी को चलाना हुआ। समय के आधार पर परिवर्तन होना अर्थात् सिर्फ थोड़ा-सा हिस्सा प्राप्ति का प्राप्त करना। जैसे एक होते हैं मालिक, दूसरे होते हैं थोड़े से शेयर्स लेने वाले। कहाँ मालिकपन, अधिकारी और कहाँ अंचली लेने वाले। इसका कारण क्या हुआ? साइलेन्स के शक्ति की अनुभूति नहीं है जिसके द्वारा परखने और निर्णय करने की शक्ति प्राप्त होने के कारण परिवर्तन तीव्रगति से होता है। समझा- साइलेन्स की शक्ति कितनी महान है! साइलेन्स की शक्ति क्रोध-अग्नि को शीतल कर देती है। साइलेन्स की शक्ति व्यर्थ संकल्पों की हलचल को समाप्त कर सकती है। साइलेन्स की शक्ति ही कैसे भी पुराने संस्कार हों, ऐसे पुराने संस्कार समाप्त कर देती है। साइलेन्स की शक्ति अनेक प्रकार के मानसिक रोग सहज समाप्त कर सकती है। साइलेंन्स की शक्ति, शान्ति के सागर बाप से अनेक आत्माओं का मिलन करा सकती है। साइलेन्स की शक्ति अनेक जन्मों से भटकती हुई आत्माओं को ठिकाने की अनुभूति करा सकती है। महान आत्मा, धर्मात्मा सब बना देती है। साइलेन्स की शक्ति सेकण्ड में तीनों लोकों की सैर करा सकती है। समझा कितनी महान है? साइलेन्स की शक्ति- कम मेहनत, कम खर्चा बालानशीन करा सकती है। साइलेन्स की शक्ति- समय के खज़ाने में भी एकानामी करा देती है अर्थात् कम समय में ज्यादा सफलता पा सकते हो। साइलेन्स की शक्ति हाहाकार से जयजयकार करा सकती है। साइलेन्स की शक्ति सदा आपके गले में सफलता की मालायें पहनायेंगी। जयजयकार भी हो गई, मालायें भी पड़ गई, बाकी क्या रहा? सब कुछ हो गया ना! तो सुना आप कितने महान हो? महान शक्ति को कार्य में कम लगाते हो।

वाणी से तीर चलाना आ गया है, अब ‘‘शान्ति'' का तीर चलाओ। जिससे रेत में भी हरियाली कर सकते हो। कितना भी कड़ा सा पहाड़ हो लेकिन पानी निकाल सकते हो। वर्तमान समय ‘‘शान्ति की शक्ति'' प्रैक्टिकल में लाओ। मधुबन की धरनी भी क्यों आकर्षण करती है? शान्ति की अनुभूति होती हैं ना! ऐसे ही चारों और के सेवाकेन्द्र और प्रवृत्ति के स्थान- ‘‘शान्ति कुण्ड'' बनाओ। तो चारों ओर शान्ति की किरणें विश्व की आत्माओं को शान्ति की अनुभूति की तरफ आकर्षित करेंगी। चुम्बक बन जायेंगे। ऐसा समय आयेगा जो आपके सर्व स्थान शान्ति प्राप्ति के चुम्बक बन जायेंगे, आपको नहीं जाना पड़ेगा वह स्वयं आयेंगे। लेकिन तब, जब सर्व में शान्ति की महान शक्ति निरन्तर संकल्प बोल और कर्म में हो जायेगी। तब ही मास्टर शान्तिदेवा बन जायेंगे। तो अभी समझा क्या करना है? अच्छा!

(आज सुबह मधुबन में कर्नाटक जोन के एक भाई ने अचानक हार्ट फेल होने से शरीर छोड़ दिया जिसका अन्तिम संस्कार आबू में ही किया गया)

आज क्या पाठ पढ़ा? कर्नाटक के ग्रुप ने क्या पाठ पक्का कराया? सदा एवररेडी रहने का पाठ पक्का किया? सदा देह, देह के सम्बन्ध, पदार्थ, संस्कार सब का पेटी बिस्तरा सदा ही बन्द हो। चित्रों में भी समेटने की शक्ति को क्या दिखाते हो? पेटी बिस्तर पैक, यही दिखाते हो ना! संकल्प भी न आये यह करना था, यह बनना था, अभी कुछ रह गया है? सेकण्ड में तैयार? समय का बुलावा हुआ और एवररेडी। तो यह पाठ पक्का किया ना? यह भी आत्मा के भाग्य की लकीर खींच गई। वैसे तो संस्कार के समय एक पण्डित को या ब्राह्मण को बुलाते हैं और वह भी नामधारी और यहाँ कितने ब्राह्मणों का हाथ लगा? महान तीर्थस्थान और सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण। ‘‘स्मृति भव'' का सहयोग, कितना श्रेष्ठ भाग्य हो गया! ताे सदा एवररेडी रहने का विशेष पाठ सभी ने पढ़ लिया। (उसकी युगल को देखते हुए बाबा बोले) क्या पाठ पढ़ा? अपना सफलता स्वरूप दिखाया। बहादुर हो। शक्ति रूप का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाया। अच्छा

सदा अपने स्व-स्वरूप, स्वधर्म, श्रेष्ठ कर्म, स्वदेश की स्मृति स्वरूप, शान्त मूर्ति, सदा शान्ति की शक्ति द्वारा सर्व को शान्त स्वरूप बनाने वाले, शान्ति के सागर की, शान्ति की लहरों में सदा लहराते हुए अनेंकों प्रति धर्मात्मा, महान आत्मा, बनने वाले, ऐसे शान्ति के शक्ति स्वरूप श्रेष्ठ पुण्य आत्मा बनने वाले, आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''

पार्टियों से:-

1. महावीर बच्चों का वाहन है श्रेष्ठ स्थिति और अलंकार हैं सर्वशक्तियाँ:- सभी अपने को महावीर समझते हो ना? महावीर अर्थात् सदा शस्त्रधारी। शक्तियों को वा पाण्डवों को सदा वाहन में दिखाते हैं और शस्त्र भी दिखाते हैं। शस्त्र अर्थात् अलंकार। तो वाहनधारी भी और अलंकारधारी भी। वाहन है श्रेष्ठ स्थिति और अलंकार हैं सर्वशक्तियाँ। ऐसे वाहनधारी और अलंकारधारी ही साक्षात्कारमूर्त्त बन सकते हैं। तो साक्षात बन सब को बाप का साक्षात्कार कराना यह है महावीर बच्चों का कर्त्तव्य।

महावीर अर्थात् सदा उड़ने वाले। तो सभी उड़ने वाले अर्थात् उड़ती कला वाले हो ना! अब चढ़ती कला भी समाप्त हो गई, जम्प भी समाप्त हो गया, अब तो उड़ना है। उड़ा और पहुँचा। उड़ती कला में जाने से और सब बातें नीचे रह जायेंगी। नीचे की चीजों को, परिस्थितियों को, व्यक्तियों को पार करने की जरूरत ही नहीं, उड़ते जाओं तो नदी नाले, पहाड़, वृक्ष सब पार करते जायेंगे। बड़ा पहाड़ भी एक गेंद हो जायेगा। उड़ती कला वाले के लिए परिस्थितियाँ भी एक खिलौना हैं। ऊपर जाओ तो इतने बड़े-बड़े देश गाँव सब क्या लगते हैं? खिलौने लगते हैं ना, माडल लगते हैं। तो यहाँ भी उड़ती कला वाले के लिए कोई भी परिस्थिति वा विघ्न खेल वा खिलौना है, चींटी समान है। चीटीं भी मरी हुई, जिन्दा नहीं, जिन्दा चींटी भी कभी-कभी महावीर को गिरा देती है। तो चींटी भी मरी हुई। पहाड़ भी राई नहीं, रूई समान। महावीर हो ना! अच्छा

मुरली का सार

परमार्थ मार्ग में विघ्न-विनाशक बनने का साधन है- माया को परखना और परखने के बाद निर्णय करना। परखने के लिए एकाग्रता की शक्ति चाहिए और एकाग्रता की शक्ति साइलेन्स की शक्ति से प्राप्त होती है। साइलेन्स की शक्ति द्वारा परखने और निर्णय की शक्ति प्राप्त होने के कारण परिवर्तन तीव्र गति से होता है। साइलेन्स की शक्ति महान है। साइलेन्स की शक्ति क्रोधाग्नि को शीतल कर देती है, व्यर्थ संकल्पों की हलचल को समाप्त कर देती है, पुराने संस्कार समाप्त कर देती है, तड़पती हुई आत्माओं को जीयदान दे सकती है, शान्ति के सागर बाप से मिलन कराती है, भटकती हुई आत्माओं को ठिकाने का अनुभव करा सकती है.... साइलेन्स की शक्ति महान पुण्य-आत्मा बनाती है, अत: इस शक्ति को कार्य में लगाते रहो।